सिंधिया समर्थकों का भविष्य खतरे में

सतना। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक जैसे-जैसे 2023 के विधानसभा नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे उनके माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट देखी जा सकती है। भारतीय जनता पार्टी 2023 में प्राय: उन्हीं लोगों को टिकट देने वाली है जिनके जीत की संभावनाएं प्रबल है इसलिए हाथ से सिंधिया समर्थक इस बात को लेकर हताश और निराश हो रहे हैं कि यदि जीत की संभावनाएं भारतीय जनता पार्टी के सीट से नेतृत्व को नहीं दिखाई तो उनका टिकट कट सकता है ऐसे में सिंधिया के तमाम समर्थकों का भविष्य अंधकार में दिखाई पड़ रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब दल बदल किया था तब उनके साथ कई समर्थक भारतीय जनता पार्टी में भी आ गए थे। भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाले विधायकों को भाजपा ने उपचुनाव के लिए टिकट भी दिया पूरे तन मन धन से प्रचार प्रसार भी किया लेकिन उसमें कुछ बड़े चेहरे चुनाव हार गए जिसमें सिंधिया की प्रबल समर्थक डबरा की विधायक रह चुकी इमरती देवी एवं ग्वालियर के मुन्ना लाल गोयल का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। सरकार के समर्थन के बाद भी जब इमरती देवी और मुन्ना लाल गोयल जैसे कई विधायक चुनाव हार गए तो अब सवाल यह उठता है कि जब सरकार के समर्थन में विधायक चुनाव नहीं जीते तो आम चुनाव जीतने की संभावना तो वैसे भी छिन्न हो जाती है। सिंधिया समर्थकों का भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के पास उतना दबाव नहीं है कि वे टिकट का दबाव बना सके ऐसे में भारतीय जनता पार्टी यदि सिंधिया समर्थकों को टिकट नहीं देती है तो उनके पास सिर्फ दो विकल्प या तो भारतीय जनता पार्टी में ही रह कर भविष्य का इंतजार करें या किसी दूसरे दल से टिकट लेकर चुनाव लड़े। यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों को 2023 में टिकट नहीं दिलवा पाए तो प्रदेश के अंदर एक और विकट स्थिति निर्मित होगी। आज की तारीख में हर नेता सबसे पहले अपने राजनैतिक भविष्य की चिंता करता है और यदि उसे अपना राजनीतिक भविष्य अंधकार में दिखेगा तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है कि ऐसे नेता किसी भी दूसरे दल में जाकर चुनाव लड़ जाए हालांकि जिस तरीके से इमरती देवी ज्योतिरादित्य सिंधिया की समर्थक है उसे देखते हुए तो ऐसा नहीं लगता कि वे किसी दूसरे दल में जाकर टिकट मांगेगी लेकिन बेहतर राजनीतिक भविष्य की संभावना को देखते हुए आज की तारीख में कोई भी नेता किसी भी दल में जाकर अपने बेहतर भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए चुनाव लड़ सकता है। जिन जगहों पर कांग्रेस के पास बड़ा चेहरा नहीं है उन जगहों पर कांग्रेस उन चेहरों पर भी दाव लगा सकती है जो चेहरे सिंधिया के साथ भारतीय जनता पार्टी में चले गए थे। अब पूरे राजनीतिक समीकरण को देखने के बाद इस बात की संभावना व्यक्त करना कि किसे टिकट मिलेगी किसे नहीं मिलेगी यह तो जल्दबाजी होगी लेकिन इतना तो तय है कि यदि सिंधिया समर्थकों को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो सिंधिया समर्थक भी कहीं ना कहीं अपना राजनीतिक ठिकाना तो ढूढेंगे। अब उस राजनीतिक ठिकाने की तलाश के चक्कर में वह दल बसपा भी हो सकती है आम आदमी पार्टी भी हो सकती है।




