सिद्धार्थ ने एक मिथक तोड़ा

सतना। सतना के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा जैसे ही महापौर का चुनाव हारे वैसे ही राजनीतिक विश्लेषक और राजनीति में सक्रिय लोग एक बात कहने लगे थे कि कही सिद्धार्थ कुशवाहा की भी कहानी उनके स्वर्गीय पिता सुखलाल कुशवाहा की तरह ही ना हो जाए। यहां पर यह बताना महत्वपूर्ण है कि सिद्धार्थ कुशवाहा के स्वर्गीय पिता सुखलाल कुशवाहा ने सतना लोकसभा से दो पूर्व मुख्यमंत्री को चुनाव में पराजित किया था उस समय तिवारी कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और भारतीय जनता पार्टी से वीरेंद्र कुमार सकलेचा चुनाव लड़े थे। यह दोनों नेता राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी माने जाते थे वही सुखलाल कुशवाहा पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। किसी को दूर-दूर तक इस बात की उम्मीद नहीं थी और ना ही कोई राजनीतिक विश्लेषक इस बात का अनुमान लगा रहा था कि बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी सुखलाल कुशवाहा दो पूर्व मुख्यमंत्री को पराजित कर विजई हो जाएंगे लेकिन तमाम संभावनाओं को दरकिनार करते हुए सतना लोकसभा से सुखलाल कुशवाहा बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर विजई हुए है और रातों-रात राजनीति की दुनिया में पूरे देश में चर्चित हो गए। सतना लोकसभा का सांसद बनने के बाद सुखलाल कुशवाहा ने अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं किया जिसके चलते वह कभी दोबारा चुनाव नहीं जीत पाए। हालांकि सतना लोकसभा से चुनाव लडऩे के बाद उन्होंने कई विधानसभा और कई लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन एक बार के बाद दोबारा चुनाव नहीं जीत पाए बावजूद इसके राजनीति में उनकी चमक उनके मरते दम तक कभी कम नहीं हुई। सिद्धार्थ कुशवाहा 2018 में पहली बार विधायक बने उसके बाद उन्होंने महापौर का चुनाव लड़ा और महापौर का चुनाव योगेश ताम्रकार से हार गए जैसे ही चुनाव हारे वैसे ही राजनीतिक परिणाम आने के बाद राजनीति के जानकारों ने अपनी टिप्पणी करना शुरू कर दी हालांकि किसी ने आकर सर्वाधिक तौर पर तो नहीं कहा लेकिन इस तरीके की टिप्पणियां राजनीतिक क्षेत्र में शुरू हो गई कि क्या सिद्धार्थ कुशवाहा भी सुखलाल कुशवाहा की तरह ही दूसरा चुनाव नहीं जीत पाएंगे जब तक 2023 के विधानसभा चुनाव परिणाम नहीं आ गए तब तक राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों की यह टिप्पणी बरकरार रही लेकिन जैसे ही 2023 के विधानसभा चुनाव परिणाम आए और सिद्धार्थ कुशवाहा दोबारा विधायक बनने में कामयाब हो गए तो लोगों की टिप्पणियों पर विराम लग गया 2023 के चुनाव परिणाम को देखने के बाद तो यह कहा जा सकता है कि सिद्धार्थ कुशवाहा ने वह मिथक तोड़ दिया है जो मिथक सुखलाल कुशवाहा के साथ कायम था।




