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श्रीनिवास तिवारी , सत्ता पर अब भी भारी

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी अब इस दुनिया में नहीं है तब भी उनके आगे सट्टा झुक गई सट्टा डर गई और उनकी मूर्ति अब वही लगेगी जहां कांग्रेसी लगाना चाहते थे अब आप अंदाजा लगा लीजिए की जो व्यक्ति इस दुनिया में नहीं है उसके बाद सट्टा प्रशासन सरकार उसके कद से डर रही है तो तू जब दादा श्रीनिवास तिवारी इस दुनिया में थे तब उनसे सत्ता और प्रशासन किस तरीके से डरता रहा होगा अंदाजा लगाइए। उनकी कार्यप्रणाली के बारे में भारतीय जनता पार्टी के सांसद जनार्दन मिश्रा भी कहते हैं कि लोग उनके बारे में कहा करते थे कि दादा न होय दाऊ आय ।कुछ भी हो सत्ता जिस तरीके से श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर गतिरोध पैदा कर रहा था उसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है श्रीनिवास तिवारी के बारे में कि श्रीनिवास तिवारी मरने के बाद भी भरी । श्रीनिवास तिवारी रीवा ही नहीं बल्कि विंध्य क्षेत्र के कद्दबर नेता रहे।रीवा शहर के saf चौराहे में उनकी मूर्ति लगने को लेकर विवाद खड़ा हो गया कांग्रेस के लोग श्रीनिवास तिवारी की मूर्ति saf चौराहे पर ही लगाना चाहते थे और भारतीय जनता पार्टी के लोग उनकी मूर्ति saf चौराहे पर नहीं लगने देना चाहते थे भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने अघोषित रूप से पुलिस प्रशासन का सहारा लिया , लेकिन जिस तरीके से सोशल मीडिया के माध्यम से यह खबरें प्रचारित और प्रसारित हो रही थी वैसे-वैसे ही श्रीनिवास तिवारी के समर्थकों का गुस्सा भारतीय जनता पार्टी की सरकार के विरुद्ध बढ़ता जा रहा था कांग्रेस के लोगों ने यह कह दिया था कि 17 तारीख को हम उनका सौवां जन्म दिवस मनाएंगे लाखों की तादाद में जनता आएगी अब वही तय करेगी कि उनकी प्रतिमा कहां स्थापित हो निश्चित तौर पर श्रीनिवास तिवारी के जन्मदिन के अवसर पर भीड़ तो पर्याप्त आएगी और यदि विवाद की स्थिति बनती तो सरकार के लिए वह विवाद संभालना मुश्किल काम होता । किसी भी व्यक्ति की लोकप्रियता का अंदाजा उसके जनाजे से भी लगाया जा सकता है और और जब श्रीनिवास तिवारी का निधन हुआ था तो उनके पहले दास संस्कार का जो काफिला था वह ऐतिहासिक था इसलिए इस बात की संभावना प्रबल थी कि यदि श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा की स्थापना saf चौराहे पर नहीं होती तो श्रीनिवास तिवारी के समर्थक किसी भी स्थिति तक जा सकते थे इस बात का अंदाजा सट्टा रूढ़ दल के लोगों को भी था । शायद इसीलिए सट्टा रोड दल के लोगों ने प्रशासन ko इस बात का संकेत दे दिया की प्रतिमा जहां लग रही है वहां लगने दीजिए नहीं तो जिले का अमन चैन भी प्रभावित हो सकता था रीवा जिले में श्रीनिवास तिवारी से ज्यादा प्रभावी नेता आज तक तो नहीं हुआ निश्चित तौर पर जो लोग राजनीति में सक्रिय हैं वह उनके कद से जलन की भावना रखते होंगे लेकिन वास्तविकता स्वीकार करनी चाहिए हर व्यक्ति के अंदर हर क्षमता नहीं होती श्रीनिवास तिवारी के समर्थकों की संख्या उनके न रहने के बाद भी पर्याप्त मात्रा में है और इसका उदाहरण पिछला विधानसभा चुनाव पिछले विधानसभा चुनाव में श्रीनिवास तिवारी के नाती सिद्धार्थ तिवारी को कांग्रेस ने टिकट नहीं दी। भारतीय जनता पार्टी ने मौके की नजाकत को भागते हुए सिद्धार्थ तिवारी को भारतीय जनता पार्टी में शामिल कराया और के त्यौंथर से टिकट दी। सिद्धार्थ तिवारी तेवर विधानसभा से चुनाव जीते ही लेकिन सिद्धार्थ तिवारी के भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाने के बाद गूढ़ विधानसभा भी भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत गई ऐसा हम नहीं कह रहे हैं वहां के विधायक नागेंद्र सिंह सार्वजनिक मर्ज से इस बात की स्वीकार्यक्ति कर चुके है । सिद्धार्थ तिवारी का असर मऊगंज विधानसभा में भी हुआ और देवतालाब विधानसभा में भी हुआ । सिमरिया विधानसभा में सिद्धार्थ तिवारी न्यूट्रल रहे होंगे इसलिए केपी त्रिपाठी एक नेता विशेष के चने के बाद भी चुनाव हार गए। जिस तरीके से श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा लगाने का विरोध किया गया उसे कोई भी व्यक्ति अच्छा तो नहीं कह रहा है राजनीतिक विरोध का इससे घटिया स्तर कुछ हो भी नहीं सकता सट्टा रूट दल के जो लोग भी श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा स्थापित करने का विरोध कर रहे थे कायदे से उन्हें नहीं करना चाहिए था क्योंकि श्रीनिवास तिवारी के राजनीतिक वारिस आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी के साथ ही राजनीति कर रहे हैं ऐसे में इतनी सहारदाता और सहानुभूति तो सिद्धार्थ तिवारी के साथ भाजपा की वरिष्ठ नेताओं को दिखाना चाहिए लेकिन भारतीय जनता पार्टी के जिन नेताओं ने जो कुछ भी किया उसे जानता भी याद रखेगी और संभवत सिद्धार्थ तिवारी भी याद रखेंगे। कुछ लोगों को यह गलतफहमी होती है कि वह विंध्य के सर्वमान्य नेता है लेकिन रीवा और मऊगंज जिले के अंदर ही सर्वमान्य नेता को कई विधायक पसंद नहीं करते बहुत संभव है कि श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा की स्थापना को लेकर भारतीय जनता पार्टी का भी एक अच्छा सरकार पर इस बात का दबाव बना रहा था कि श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा वहीं स्थापित हो जहां लोग चाहते हैं बहुत संभव है कि भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी इस पूरे मामले में हस्तक्षेप किया हो और प्रतिमा स्थापना की स्वीकृति दी हो

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