उपमुख्यमंत्री को सिद्धार्थ क्यों दे रहे हैं चुनौती

किसी समय यह बात कही जाती थी कि कांग्रेस का अंतर कलह कभी खत्म नहीं हो सकता । एक-दो साल के लिए छोड़ दे तो बीते 25 वर्षों से कांग्रेस सत्ता में नहीं है इसके बाद भी कांग्रेसी लड़ाई सड़कों पर स्पष्ट दिखाई देती है कभी दिग्विजय सिंह कमलनाथ आपस में बयान बाजी करते रहते हैं तो कभी मंच से ही अजय सिंह राहुल और कमलेश्वर पटेल की खींचतान सामने आ जाती है यह सब घटनाएं 2025 की ही है लेकिन जो रोग कांग्रेस का स्थाई रोग था उसे रोग ने अब भारतीय जनता पार्टी में भी जगह बना ली भारतीय जनता पार्टी में भी अब अंतर कलह स्पष्ट समझ में आने लगा है विंध्य क्षेत्र के अंदर बीते दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव त्यौंथर के विधायक सिद्धार्थ तिवारी के बुलावे पर त्यौंथर गए । भारी भरकम घोषणाएं भी की इस मंच पर रीवा के सांसद जनार्दन मिश्रा सतना के सांसद गणेश सिंह व्यवहारी के विधायक शरद कोल के अलावा मंगवाना के विधायक भी मंच पर मौजूद थे लेकिन मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला इस मंच पर जबकि कार्यक्रम रीवा जिले में ही था लोग बताते हैं कि इस कार्यक्रम के जो बैनर पोस्टर बनाए गए थे उसे बैनर पोस्टर से प्रदेश के उपमुख्यमंत्री को सिद्धार्थ तिवारी ने गायब कर दिया था अब इसके पीछे की वजह सिद्धार्थ तिवारी ही जान सकते हैं लेकिन सिद्धार्थ तिवारी जी कुनबे से आते हैं वह कुनबा विंध्य की राजनीति में बड़ी रसूख वाला माना जाता था सिद्धार्थ तिवारी श्रीनिवास तिवारी के पोते हैं श्रीनिवास तिवारी को व्हाइट टाइगर के नाम से जाना जाता है विधानसभा के 10 साल लगातार अध्यक्ष रहे कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे जनता पार्टी की लहर जब थी उसे समय भी विधायक चुनकर गए। रीवा जिले की हर विधानसभा से उनके नजदीकी लगाव थे हर विधानसभा से उन्हें जानने पहचानने और महत्व देने वालों की संख्या पर्याप्त इसके बाद सुंदरलाल तिवारी जो सिद्धार्थ तिवारी के पिताजी थे वह भी रीवा से सांसद रहे गुड से विधायक रहे सिद्धार्थ तिवारी तीसरी पीढ़ी में राजनीति कर रहे हैं और सिद्धार्थ तिवारी भी आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी से त्योहार के विधायक है।बिंदी की राजनीति में बीते दो दशक से राजेंद्र शुक्ल का दबदबा है विंध्य की राजनीति राजेंद्र शुक्ल के इर्द-गिर की घूमती है और बीते दो दशकों में उन्हें कोई चुनौती नहीं दे सका । जब कमलनाथ की सरकार गिरी और शिवराज सिंह पुनः प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए उसे मंत्रिमंडल में राजेंद्र स्कूल को जगह नहीं मिली गिरीश गौतम को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया लेकिन रीवा जिले की राजनीति में विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद भी गिरीश गौतम अपना रुतबा कायम नहीं कर पाए सरकारी मुलाजिम राजेंद्र शुक्ल की घूमते रहे कई बार तो ऐसा भी हुआ कि विधानसभा अध्यक्ष होते हुए भी भूमि पूजन गिरीश गौतम नहीं बल्कि राजेंद्र शुक्ला किया करते थे। राजेंद्र शुक्ल की भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में अच्छी पकड़ है जहां तक रही बात विरोध की तो राजेंद्र शुक्ला को जनार्दन शुक्ला पसंद करते हैं इसके अलावा सिमरिया के हारे हुए विधायक के पति त्रिपाठी भी उन्हीं की पसंद माने जाते हैं । स्पष्ट तौर पर या खुलकर तो कोई विरोध नहीं करता राजेंद्र शुक्ल का लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें ना तो दिव्यराज सिंह पसंद करते हैं नहीं नागिन से गिरीश गौतम और प्रदीप पटेल भी सिर्फ इसी मौके की तलाश में है कि उन्हें मौका मिले और वर्चस्व को चुनौती दे हालांकि जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे तो प्रदीप पटेल को पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य बना दिया गया था जिसके चलते वे राजेंद्र शुक्ल के विरुद्ध समानांतर सत्ता चलाते रहते थे । लेकिन मोहन यादव की सरकार में प्रदीप पटेल को इतना महत्व नहीं मिल रहा है लेकिन कहीं ना कहीं जिस तरीके से सिद्धार्थ तिवारी ने पोस्टर से उपमुख्यमंत्री को गायब किया उसे देखकर तो ऐसा लगता है कि उन्हें कहीं ना कहीं कोई ना कोई सक्षम व्यक्ति संरक्षण दे रहा है जिसके चलते सिद्धार्थ तिवारी उपमुख्यमंत्री की उपेक्षा कर रहे हैं । लोग तो कहते हैं कि चौतार के कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री को आमंत्रित भी नहीं दिया गया अब आखिरकार विंध्य क्षेत्र की राजनीति में यदि उपमुख्यमंत्री को चुनौती मिले तो कहीं ना कहीं बड़ी बात है लेकिन सवाल यही है कि सिद्धार्थ तिवारी किसकी शह पर उपमुख्यमंत्री को चुनौती दे रहे है । सिद्धार्थ तिवारी श्रीनिवास तिवारी के पोते हैं इसलिए वह मानकर चल रहे हैं कि उनकी राजनीतिक सक्रियता उन्हें विंध्य क्षेत्र का ब्राह्मण नेता बना सकती है । यदि सिद्धार्थ तिवारी को भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का समर्थन मिला तो इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि वह बिंदु क्षेत्र के ब्राह्मण नेता बन सकते हैं क्योंकि आज की तारीख में राजेंद्र शुक्ल के अलावा खाने के लिए ब्राह्मण नेता कई है लेकिन किसी का ना तो उतना प्रभाव है और ना ही किसी का उतना दबाव कुछ दिनों के लिए नारायण त्रिपाठी हवा में जरूर उछले थे लेकिन पिछला विधानसभा और लोकसभा चुनाव हारने के बाद नारायण त्रिपाठी की भी हालत बहुत अच्छी नहीं है । विंध्य क्षेत्र से लगे कटनी जिले के विजयराघवगढ़ के विधायक संजय पाठक के पास पर्याप्त पैसा है पैसे के दम पर वह भी ब्राह्मण का नेता बनने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वर्तमान में उनके दिन भी अच्छे नहीं चल रहे है । ऐसे में सिद्धार्थ तिवारी यह मानकर चल रहे हैं कि उनके लिए यह अनुकूल समय है और यदि सिद्धार्थ तिवारी अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ा देते हैं तो भिन्न क्षेत्र में उन्हें ब्राह्मण नेता के रूप में स्वीकार किया जा सकता है ऐसा सिद्धार्थ तिवारी मानकर चल रहे हैं ।




