कंकर , कंकर , शंकर

सत्ता के शामियाने में लगातार 15 साल बैठने के बाद भी सत्ता की हनक , सत्ता का अहंकार सत्ता का रसूख , सत्ता के दुर्गुण जो आज के तमाम नेताओं में व्याप्त है शंकरलाल तिवारी में नहीं आए । 15 साल लगातार विधायक होने के बाद भी शंकर लाल तिवारी के ऊपर कभी सत्ता के दुरुपयोग के आरोप नहीं लगे । ऐसा इसलिए मैं प्रामाणिकता के साथ बोल रहा हूं कि मैने शंकर लाल तिवारी के विरोध में कई समाचार लगातार लिखे । जब मैं सतना दैनिक जागरण का ब्यूरो चीफ था । उनके विरुद्ध समाचार लिखने के बाद मेरी हिम्मत नहीं होती थी कि मैं उनसे नजरे मिलाऊं । लेकिन जब भी उनसे मुलाकात हुई तो उनसे बातचीत के दौरान यह कभी महसूस नहीं हुआ या उन्होंने यह कभी महसूस नहीं होने दिया कि मैने उनके विरुद्ध समाचार लिखा था । आजकल के नेताओं के विरुद्ध लगातार चार दिन आप समाचार लिख दीजिए तो उनकी कोशिश होती है की पुलिस से मिलकर पत्रकार के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करा दे । शंकर लाल तिवारी जिले के एक ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने विरोधियों को भी पर्याप्त महत्व दिया । उन्हें भी इतनी इज्जत बक्शी जो उनके विरुद्ध भी टिप्पणी करते थे । वैसे स्वार्थ वश भले ही कोई शंकर लाल तिवारी का विरोधी रहा हो तो अलग बात है लेकिन शंकर लाल के अंदर विरोधियों को भी अपना बनाने की अद्वितीय क्षमता थी । शंकर लाल आज की तारीख में इस दुनिया में नहीं लेकिन उनकी इतनी सारी कहानियां है कि यदि लिखी जाए तो दो चार दस किताबें या एक ग्रंथ लिखा जा सकता है। सब्जी वाले या सब्जी वाली से मिलो तो शंकर लाल के बारे में कोई कहानी बताती है रिक्शा वाले से मिलो तो कहानी बताता है ताला बनाने वाले से मिलो वह भी कहानी बताता है । फुटपाथ में बैठा व्यक्ति भी कहानी बताता है शंकर लाल के बारे में और महलों में रहने वाला व्यक्ति शंकर लाल के संदर्भ में कोई न कोई कहानी जरूर बता देता है। किसी ने सच ही कहा है की जो व्यक्ति जुबान से कड़वा होता है वह व्यक्ति दिल का बुरा नहीं होता शंकर लाल तिवारी के ऊपर यह बात पूरी तरह से लागू होती थी अपने पूरे राजनीतिक जीवन में शंकर लाल तिवारी ने शायद ही किसी का बुरा किया होगा । नेता दो प्रकार के होते हैं एक नेता परिक्रमा लगाकर आगे बढ़ता है अगर क्षेत्रीय भाषा में कहें तो चमचागिरी करके और एक नेता होता है पराक्रम के दम पर आगे जाता है शंकर लाल तिवारी पराक्रमी नेता थे । अक्खड़ थे इसलिए उन्हें हर कोई पसंदनहीं करता था । जंक्शन के जमाने से राजनीति में थे रामहित गुप्ता के नजदीकी थे लेकिन रामहित गुप्ता भी शंकर लाल तिवारी के पुरुषार्थ को जानते थे इसलिए वह भी नहीं चाहते थे कि शंकर लाल तिवारी विधायक बने। शंकर लाल तिवारी का दवा सतना विधानसभा की टिकट पर बहुत पहले से था लेकिन उनकी जगह बृजेंद्र नाथ पाठक को टिकट दे दी जाती थी। शंकर लाल तिवारी को शायद कभी टिकट मिलती भी नहीं यदि शंकर लाल तिवारी एक बार निर्दलीय चुनाव लड़कर अपनी हैसियत भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को न बताते। शंकर लाल तिवारी अक्सर सतना विधानसभा से टिकट मांगते थे लेकिन उनका जन आधार मजबूत होने के बाद भी एक बार भाजपा ने मांगे राम गुप्ता को टिकट दे दी । शंकर लाल तिवारी पार्टी से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़े । वह निर्दलीय चुनाव भी बड़ा ऐतिहासिक था चुनाव चिन्ह था बरगद । मैंने अपनी पूरी पत्रकारिता के दौरान पहली बार ऐसा देखा की जनता किसी नेता का चुनाव कैसे लड़ती है। शंकर लाल तिवारी चुनाव तो नहीं जीते लेकिन भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी मांगेराम गुप्ता की जमानत जप्त हो गई । जब अगला चुनाव आया तो भारतीय जनता पार्टी यह मान चुकी थी कि सतना विधानसभा से शंकर लाल तिवारी के अलावा कोई दूसरा नेता चुनाव नहीं जीत सकता और पार्टी ने शंकर लाल तिवारी को टिकट दी शंकर लाल तिवारी लगातार तीन बार विधायक रहे। किसी भी नेता का तीन बार विधायक बनना निश्चित तौर पर उसकी लोकप्रियता का परिचायक है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के ही तमाम नेताओं को शंकर लाल तिवारी पसंद नहीं आते थे क्योंकि वह अपनी विधानसभा में किसी दूसरे नेता का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते थे । भारतीय जनता पार्टी ने शंकर लाल तिवारी को चौथी बार भी टिकट दी लेकिन भीतरघात के चलते शंकर लाल तिवारी चुनाव लेकिन उनकी सक्रियता अंतिम सांस तक कम नहीं हुई। पार्टी के हर कार्यक्रम में वह शरीक होते थे । जनता की हर समस्या को वह बुलंद तरीके से उठाते थे । शिक्षा और चिकित्सा पर उनका पर्याप्त जोर था। उन्होंने सतना शहर के तमाम मिडिल स्कूलों को हायर सेकंडरी और हाई स्कूल में तब्दील किया सतना जिला चिकित्सालय में जितनी सुविधाएं दिखती है उनके लिए शंकर लाल तिवारी ने संघर्ष किया मेडिकल कॉलेज और फ्लाईओवर भी शंकर लाल की ही देन है । शंकर लाल जब चुनाव हारे उसे बार रामू राम गुप्ता को विशेष रूप से चुनाव लड़ाया गया था जिससे शंकर लाल तिवारी चुनाव इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी से पुष्कर सिंह तोमर भी चुनाव लड़े । जबकि शंकर लाल तिवारी और पुष्कर सिंह तोमर एक दूसरे का राजनीति के क्षेत्र में पर्याप्त समर्थन करते थे पुष्कर सिंह तोमर के चुनाव लड़ने से भी शंकर लाल तिवारी का चुनावी समीकरण गड़बड़ाया । चलते फिरते अचानक शंकर लाल तिवारी की तबीयत कैसे खराब हुई उन्हें क्या हुआ यह आज भी लोगों को ठीक ढंग से पता नहीं चल पाया अचानक से उन्हें सतना जिला चिकित्सालय से दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया जहां उन्होंने अंतिम सांस ली । शंकर लाल तिवार के अन्दर तमाम खासियत थी । किसी के मरने की सूचना यदि उन्हें आधी रात भी मिली तो वह उनके घर तत्काल प्रभाव से पहुंचते थे । शादी विवाह के कार्यक्रम में भी शंकर लाल तिवारी हजार काम छोड़कर पहुंच जाते थे । उनकी इस सक्रियता का आज की तारीख में कई नेता नकल भी करते हैं। शंकर लाल तिवारी का जब से निधन हुआ है तब से कहीं भी उठिए बैठिए जो शंकर लाल तिवारी को जानता है चर्चा उन्हीं की कर रहा है कि आखिरकार ये सब कैसे हो गया । कई बार तो ऐसा लगता है कि कंकड़ पत्थर भी शंकर लाल की चर्चा न करने लगे क्योंकि शंकर लाल तिवारी एक ऐसे नेता थे जो सही मायने में जन नेता थे । आज की तारीख में लोग कहते हैं कि बिना पैसे के राजनीति नहीं की जा सकती लेकिन शंकर लाल तिवारी ने इस अवधारणा को भी तोड़कर बताया कि एक फक्कड़ आदमी भी राजनीति में सफल हो सकता है बशर्ते वह जनता के लिए ईमानदारी से समर्पित रहे। जब शंकर लाल तिवारी निर्दलीय चुनाव लड़े तो कुछ लोग यह कहा करते थे कंकड़ कंकड़ शंकर । उनके ना रहने पर आज यह बात याद आती है और ऐसा लगता है की कंकड़ कंकड़ भी शंकर की चर्चा कर रहे हैं।




