लोकसभा भी लड़ सकती है महिला समाजसेवी

लोग कहते हैं मोदी की सोच का जवाब नहीं लोग कहते हैं मोदी है तो मुमकिन है। मोदी के कार्यकाल में मैने भी कुछ ऐसी चीजें देखी है जो वाकई में असंभव लगा करती थी। सोच-सोच की बात होती है इस देश के लोग कहा करते थे कि कुछ भी हो जाए कश्मीर से धारा 370 नहीं हट सकती, हटी। देश के तमाम नेता एक नारा बुलंद किया करते थे राम लला हम लाएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे तारीख नहीं बताएंगे। लेकिन मोदी के रहते वह तारीख भी सुनिश्चित हो गई जिसमें राम मंदिर बनकर आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा। इस देश के अंदर ट्रिपल तलाक भी खत्म किया। अब इस देश के अंदर देश की संसद में महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया गया है संख्या बल के आधार पर देखें तो यदि कोई तकनीकी खामी नहीं आई तो यह बिल पास भी होगा। 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी को देखते हुए जिस तरीके से विपक्ष एकजुट हुआ और उसने इंडिया नामक संस्था को जन्म दिया उसके बाद से ही नरेंद्र मोदी ने तैयारी करनी शुरू कर दी थी कि आखिरकार 2024 के लोकसभा चुनाव के हिसाब से मजबूत और उम्दा दांव क्या हो सकता है। या यंू कहे कि लोकसभा चुनाव के हिसाब से मास्टर स्ट्रोक क्या हो सकता है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण बिल पेश करके एक मास्टर स्ट्रोक चल दिया है जिसके चलते देश की 48 फीसदी महिलाएं जो मतदाता है उसका सीधा लाभ लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है। इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण दांव नरेंद्र मोदी ने खेला है जिसके तहत ऐसे तमाम सांसद जिन्हें वे चुनावी मैदान से बाहर करना चाहते हैं उन्हें इस महिला आरक्षण बिल के माध्यम से वह बड़ी आसानी के साथ बिना युद्ध किए मैदान से बाहर कर देंगे। वर्तमान में लोकसभा में महिला संसद की संख्या 82 है लेकिन जब यह बिल पास हो जाएगा तब लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 181 हो जायेगी। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को भी पूरे देश के अंदर 181 महिलाओं को टिकट देना मजबूरी होगा। अगर भारतीय जनता पार्टी ने देश की संसद में महिला बिल आरक्षण पेश किया है तो निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी की अपनी तैयारी 1 साल पहले से महिला प्रत्याशियों को ढूंढने की दिशा में शुरू हो गई और बहुत संभव है कि सतना में एक ऐसी समाज सेविका जो जगह-जगह स्वास्थ्य शिविर लगा कर समाज सेवा का आडंबर कर रही है वह भी अपने भाजपाई मजबूत संबंधों के आधार पर लोकसभा चुनाव लडऩे का स्वप्न देख सकती है क्योंकि यदि सतना सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाए तो गणेश सिंह अपने घर से उमेश सिंह लाल की पत्नी सुधा सिंह को आगे कर सकते हैं क्योंकि सुधा सिंह जिला पंचायत की अध्यक्ष पूरा जिला उनको एक नेता के रूप में मान्यता देता है लेकिन यदि आत्ममुग्ध समाजसेवी जिसका सतना की सरजमी से कोई लेना-देना नहीं है यदि उसने चुनाव लडऩे की सोची तो निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ गणेश सिंह के समर्थन एवं तमाम पिछड़े वर्ग के वे लोग जो गणेश सिंह को अपना नेता मानते हैं इस आत्म मुग्ध समाजसेवी को चुनावी मैदान से तो बाहर कर ही देंगे। इस आत्म मुक्त समाजसेवी ने हाल ताज में ही भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली और जिस तरीके से स्वास्थ्य शिविर के बहाने आम जनता के दिलों में उतरने की नाकाम कोशिश कर रही है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है की राजनीति का पथरीला डगर इतना आसान भी नहीं है कि चंद्र स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से लोकसभा का दरवाजा खटखटाया जा सके। यदि स्वास्थ्य शिविर लगाकर लोग लोकसभा सदस्य बनने का सपना देखने लगे तो टाटा घराने का रिलायंस घराने का अपोलो घराने का मैक्स घराने का ये सदस्य जो बड़े-बड़े हॉस्पिटल देश के अंदर चल रहे हैं उनका कोई ना कोई सदस्य लोकसभा में आला टांग कर बैठा होता। पहले लोग कहते थे की राजनीति में सफल होने के लिए या तो आदमी के अंदर पराक्रम होना चाहिए या तो उसके अंदर परिक्रमा लगाने की क्षमता होनी चाहिए लेकिन जिस तरीके से एक महिला सतना में टपकती है उसके बाद समाज सेवा का दिखावा करती है पहले तो लोगों की सिर्फ आंख चेक की गई लेकिन चश्मा आज तक नहीं मिला। नेत्र शिविर लगाकर नेत्र रोगियों का इलाज नहीं किया गया बल्कि नेत्र रोगियों का डाटा जुटाया गया। अब सामान्य रोगियों के लिए रोग शिविर लगाया गया और उसके माध्यम से लोगों का डाटा जुटाया जा रहा है। कोई बहुत बड़ी दवाई नहीं हो रही है पेरासिटामोल गैस की दवाइयां ही बट रही है इसे अगर आम आदमी जाकर दुकान से खरीदे तो पांच- दस की ही गोलियां है और यदि आप शासकीय चिकित्सालय में जाकर दिखाएं तो यह गोलियां आपको मुफ्त में भी मिल रही हैं। लेकिन जिस तरीके से इस आत्म मुग्ध समाजसेवी महिला ने प्रचार-प्रसार किया उस तरीके का प्रचार-प्रसार शासकीय चिकित्सालय नहीं किया करते। अभी तो सतना शहर में कुछ जगह शिविर लगे हैं अभी इस बात का बहुत हल्ला है कि शिविर के माध्यम से सतना शहर रोग मुक्त हो गया लेकिन इस शिविर के माध्यम से बटने वाली दवाइयां जब मरीज को फायदा नहीं करेंगे तो आप अंदाजा लगाइए की जनता इस आत्म मुग्ध समाजसेवी का क्या हालत करेगी। किसी भी समाजसेवी को नियम कानून कायदों का पालन तो करना चाहिए जब इस संबंध में सतना जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी एलके तिवारी से बातचीत की गई कि शहर के अंदर जगह-जगह शिविर लग रहे हैं यदि किसी जनता के साथ कोई असुविधा हुई या दुर्घटना हुई तो इस बात के लिए जिम्मेदार कौन होगा क्या आपको इस बात की सूचना है की जगह-जगह स्वस्थ शरीर लगाए जा रहे हैं उन्होंने कहा मुझे इस बात की कोई सूचना नहीं मजेदार बात यह भी है की जो चिकित्सा और नर्स इस शिविर में आम जनता का इलाज कर रहे हैं वह वाकई में शिक्षित और प्रशिक्षित है या उन्हें सफेद कोट पहनकर बैठा दिया गया है। इस संबंध में भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी को कोई जानकारी नहीं है। किसी ने सच ही कहा है कि हिंदुस्तान भेडिय़ा धसान। सतना शहर में आकर कौन क्या कर रहा है जिम्मेदार अधिकारियों को कोई लेना देना नहीं नेताओं को भी कोई लेना देना नहीं। सतना शहर की जिम्मेदार नेताओं को भी यह देखना चाहिए कि आखिरकार जिस जनता से हम वोट लेते हैं उनके साथ कोई अन्याय ना कर सके।




