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क्या लोकसभा भी लड़ेंगे सिद्धार्थ

सतना। सतना जिले के अंदर सिद्धार्थ कुशवाहा कांग्रेस की मजबूरी बन चुके हैं ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है कि जब विधानसभा चुनाव आता है तो उन्हें सतना से विधानसभा की टिकट भी मिलती है और जब महापौर का चुनाव आता है तो उन्हें महापौर की भी टिकट मिलती है और अब लोकसभा का चुनाव आने वाला है और इस बात की संभावना जताई जाने लगी है कि लोकसभा की टिकट भी सिद्धार्थ कुशवाहा को मिल सकती है। क्योंकि कांग्रेस के पास कोई ऐसा मजबूत और दमदार प्रत्याशी नहीं है जिसके सहारे कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी के किसी भी प्रत्याशी को चुनौती दे सके। बीते कई चुनावो पर अगर नजर डालें तो अमरपाटन के वर्तमान विधायक राजेंद्र सिंह दो बार लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं एक बार अजय सिंह राहुल और एक बार राजाराम के साथ-साथ सुधीर सिंह तोमर भी लोकसभा चुनाव में पराजय का स्वाद चख चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के पास आज की तारीख में कोई ऐसा कद्दबर नेता नहीं है जिसके दम पर कांग्रेस लोकसभा चुनाव फतह कर सके। सिद्धार्थ कुशवाहा के पिता स्वर्गीय सुखलाल कुशवाहा एक बार सतना से सांसद रह चुके हैं उन्होंने दो पूर्व मुख्यमंत्री को एक साथ हराया था सुखलाल कुशवाहा ने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह एवं पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा को चुनाव में पराजित करके रातों-रात पूरे देश के अंदर सुर्खियां बटोर ली थी सुखलाल कुशवाहा बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर विजय हुए थे हालांकि सुखलाल कुशवाहा की बहुत दिनों तक बहुजन समाज पार्टी से नहीं पटी तो उन्होंने समानता दल ज्वाइन कर लिया था। समानता दल ज्वाइन करने के बाद सुखलाल कुशवाहा कोई चुनाव तो नहीं जीत पाए लेकिन एक बार रामपुर बाघेलान में हर्ष नारायण सिंह का समर्थन करके उन्हें चुनाव जरूर जितवा दिया था सुखलाल कुशवाहा ने सतना शहर में पुष्कर सिंह को भी महापौर बनाने में बड़ी भूमिका अदा की थी। सिद्धार्थ कुशवाहा लगातार दो बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं पहली बार शंकर लाल तिवारी को चुनाव हराया था और दूसरी बार चार बार के सांसद रह चुके गणेश सिंह ऐसे में सिद्धार्थ कुशवाहा की राजनीतिक चमक पूरे प्रदेश के साथ-साथ देश में भी बिखेर रही है 5 जनवरी को अपने पिता स्वर्गीय सुखलाल कुशवाहा के नाम पर सिद्धार्थ कुशवाहा एक संकल्प रैली करने जा रहे हैं इस संकल्प रैली के माध्यम से सिद्धार्थ कुशवाहा पूरे जिले के साथ-साथ पूरे प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं को यह संदेश देने की भी कोशिश करेंगे कि सतना के जनाधार वाले नेता सिर्फ सिद्धार्थ कुशवाहा है बाकी जितने भी नेता है उनमें से अधिकांश कागजी नेता है।
सिद्धार्थ कुशवाहा के पास उनके सजातीय मतदाता तो उनके पास है ही इसके अलावा उन्होंने बीते 5 वर्षों में अन्य जातियों के बीच भी मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश की है यदि ऐसा नहीं होता तो सतना का चुनाव सिद्धार्थ कुशवाहा दोबारा नहीं जीते 5 जनवरी को जो संकल्प रैली है उस रैली में सिद्धार्थ कुशवाहा ने अमरपाटन के विधायक राजेंद्र सिंह रैगांव की पूर्व विधायक कल्पना वर्मा और चित्रकूट के पूर्व विधायक नीलांशु चतुर्वेदी को भी विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। इससे साफ जाहिर होता है कि वे अन्य विधानसभा के प्रमुख नेताओं को भी साध रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की जिस तरीके से लहर चल रही है उसे देखते हुए जल्दी कोई कांग्रेस की टिकट पर लडऩे के लिए भी तैयार नहीं होगा यदि कोई तैयार भी हुआ तो यही सोचकर तैयार होगा कि चुनावी समर में अपनी शहादत देनी है ऐसे में विकल्प के अभाव में सतना जिले के अंदर एक ही चेहरा नजर आता है और वह है सिद्धार्थ कुशवाहा। यदि सिद्धार्थ कुशवाहा चुनाव नहीं लड़े तो बहुत संभव है कि वह अपनी पत्नी को भी चुनाव लडवा दे। फिलहाल सतना जिले के अंदर जो राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं उसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि सिद्धार्थ कुशवाहा एक बार लोकसभा का भी चुनाव लड़ सकते हैं।

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