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नेताओं के अहंकार ने डुबोई कांग्रेस की लुटिया

सतना। कहने के लिए विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस के कई कद्दावर नेता जिसमें पहला नाम अजय सिंह राहुल का आता है दूसरा नाम सीधी के ही कमलेश्वर पटेल का आता है श्रीनिवास तिवारी के निधन हो जाने के बाद यदि कांग्रेस तरीके से ब्राह्मण वोटो को संभालती तो सिद्धार्थ तिवारी भी रीवा के एक बड़े नेता कहलाते हैं। इसके अलावा आज की तारीख सतना के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा भी इस हैसियत में है कि अपने सजातीय वोटो को अपने मन माफिक ट्रांसफर करा सकें। यदि विंध्य क्षेत्र के चार नेता आपस में इस बात का समझौता करते कि कांग्रेस की सरकार बनानी है तो हम सबको मिलकर काम करना पड़ेगा अगर यह चार नेता आपस में मिल बैठकर आपसी सहमति बनाते तो शायद विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है वह न होती।
विंध्य क्षेत्र की यदि यह चार जातियां कांग्रेस को वोट करती तो परिणाम कुछ और होते यदि अजय सिंह राहुल कमलेश्वर पटेल सिद्धार्थ कुशवाहा और सिद्धार्थ तिवारी पूरे विंध्य क्षेत्र में एक दूसरे का सपोर्ट करते तो निश्चित तौर पर कांग्रेस को बड़े परिणाम मिलते लेकिन विंध्य क्षेत्र के ये चार नेता आपस में ही एक दूसरे को निपटाते रहे जिसके चलते विंध्य में कांग्रेस कोई चमत्कार नहीं कर पाई सबसे पहले नुकसान तो कांग्रेस में सिद्धार्थ तिवारी की टिकट काटकर किया वहीं भारतीय जनता पार्टी ने सिद्धार्थ तिवारी को त्यौंथर से टिकट दे दी जिसके चलते रीवा जिले में कई हारी हुई विधानसभा भी भारतीय जनता पार्टी जीत गई। सिद्धार्थ तिवारी की टिकट किसने काटी क्यों काटी किसने कटवाई यह अपने आप में बड़ा सवाल है लेकिन यदि ईमानदार राजनीतिज्ञ होगा जिसने टिकट कटवाई तो आज की तारीख में हम महसूस कर रहे होगे कि सिद्धार्थ तिवारी की टिकट कटने से कांग्रेस को कितना नुकसान हुआ।
कांग्रेस सिद्धार्थ तिवारी को विधायक बनने से रोकना चाहती थी लेकिन सिद्धार्थ तिवारी की किस्मत में विधायक बनना लिखा था सिद्धार्थ तिवारी ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और भारतीय जनता पार्टी से टिकट लेकर त्यौंथर से न सिर्फ विधायक बन गए बल्कि कई कांग्रेसियों को निपटा भी दिया। कांग्रेस के काद्यावर नेता भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से गोपनीय तौर पर समझौता कर सकते हैं लेकिन कांग्रेस के नेताओं से समझौता करने में उन्हें तकलीफ होती है उनकी मर्यादा प्रभावित होती है।
लोग कहते हैं कि कमलेश्वर पटेल और अजय सिंह राहुल में भी मतभेद थे यह भी सुनने में आया कि विधानसभा चुनाव के पहले इन दोनों के मतभेद आपस में सुलझा लिए गए लेकिन अजय सिंह राहुल तो चुनाव जीत गए कमलेश्वर पटेल चुनाव हार गए अब कमलेश्वर पटेल चुनाव क्यों हारे इसकी वजह कमलेश्वर पटेल ही बेहतर जानते होंगे लेकिन कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि कमलेश्वर पटेल को निपटाने में अजय सिंह राहुल की भी भूमिका है अब इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो अजय सिंह राहुल और कमलेश्वर पटेल ही जान सकते हैं लेकिन राजनीतिक चर्चाओं पर कोई भी विराम लगा भी नहीं सकता। इसके अलावा सतना के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा और अजय सिंह राहुल में भी पर्याप्त मात्रा में मतभेद है इस मतभेद के चलते भी सतना जिले की भी कई सीट प्रभावित हुई जिसमें रैगांव, चित्रकूट, मैहर, रामपुर बाघेलान कभी नाम लिया जा सकता है यदि अजय सिंह राहुल और सिद्धार्थ कुशवाहा मिलकर चुनाव लड़ते तो कुशवाहा वोटो का पूरे विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ मिलता। कमलेश्वर पटेल यदि पूरे विंध्य क्षेत्र में आपसी तालमेल बनाकर लड़ते तो चुनावी परिणाम का परिदृश्य कुछ और होता।
यदि विंध्य क्षेत्र में अजय सिंह राहुल कमलेश्वर पटेल सिद्धार्थ कुशवाहा और सिद्धार्थ तिवारी चारों मिलकर योजनाबद्ध तरीके से चुनाव की प्लानिंग करते तो निश्चित तौर पर चुनाव परिणाम अच्छे आते क्योंकि अजय सिंह राहुल के माध्यम से ठाकुर वोटो का ध्रुवीकरण होता सिद्धार्थ तिवारी के माध्यम से ब्राह्मण वोटो का कमलेश्वर पटेल के माध्यम से पटेल वोटो का और सिद्धार्थ कुशवाहा के माध्यम से कुशवाहा वोटो का ध्रुवीकरण होता साथ में मुस्लिम वोट कांग्रेस को प्लस करते लेकिन कांग्रेस के इन चारों नेताओं की दिशा अलग-अलग हर नेता एक दूसरे को चुपके चुपके निपटाने में लगा था जिसके चलते विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस की लुटिया डूब गई। बहुत संभावना है कि इसी तरीके के परिणाम लोकसभा चुनाव में भी आएंगे क्योंकि हार से कांग्रेस के नेताओं ने अभी भी सबक नहीं लिया। हार से इतना सबक जरूर लिया है कि अजय सिंह राहुल ने इस बात की घोषणा कर दी है कि हम लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। अब देखना यह है कि विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस क्या रणनीति अपनाती है।

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