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कम नहीं हो रहे शिवराज के आंसू

सतना। कुर्सी तो कुर्सी होती है चाहे नेता हो चाहे अधिकारी हो चाहे कोई हो उसे मलाईदार कुर्सी चाहिए जिस कुर्सी से उसको सम्मान भी मिले और उस कुर्सी से प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से धन भी मिलता रहे तो सोने में सुहाग वाली बात होती है। कुर्सी जाने का दर्द उससे पूछिए जिसकी कुर्सी गई है। शिवराज सिंह की मध्य प्रदेश से कुर्सी क्या गई उनका दर्द रोज जुबान पर आ ही जाता है कभी कहते हैं की राजतिलक होते-होते बनवास हो जाता है और अब बोल रहे हैं कि अपन रिजेक्टेड माल नहीं है। रिजेक्टेड माल तो कोई नेता नहीं होता। क्या लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दिया गया और वह चुप्पी साध कर बैठ गए तो क्या उन्हें रिजेक्टड नेता कहा जाएगा।
निश्चित तौर पर लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने जिस तरीके का संयम राजनीतिक क्षेत्र में बरता है वह अपने आप में एक मिसाल है। आज की तारीख में किसी भी नेता को दल से कोई मतलब ही नहीं रह गया है उसे तो सिर्फ सांसद और विधायक की टिकट चाहिए मंत्री बनना उसकी पहली पसंद है। कोई भी नेता आज की तारीख में त्याग तो करना जानता ही नहीं उसे तो सिर्फ कुर्सी चाहिए अब देखिए ना शिवराज सिंह की फडफ़ड़ाहट का आलम। इसमें कोई दो मत नहीं है की मध्य प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री रहते उन्होंने जनता की सहन बहुत बटोरी है उन्हें कुछ लोग भाई भी बोलते हैं और कुछ लोग मामा भी बोलते हैं। लेकिन जिस तरीके से कुर्सी जाने का गम शिवराज सिंह की जुबान से छलक रहा है उससे ऐसा लगता है कि शिवराज सिंह चौहान घोषित तौर पर तो भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध कोई मोर्चा नहीं खोल रहे हैं लेकिन घोषित तौर पर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें कमजोर आंकने की कोशिश भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ना करे। जिस तरीके से आज कुर्सी छिनने के बाद शिवराज सिंह चौहान फडफ़ड़ा रहे हैं ठीक उसी तरीके से उमा भारती भी कुर्सी छिनने के बाद फडफ़ड़ा रही थी और इसी फडफ़ड़ाहट में उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी का निर्माण भी कर लिया था उमा भारती को यह गलतफहमी थी कि भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश में जो सरकार बनी है वह उमा भारती के कारण बनी है शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती में सिर्फ अंतर इतना है कि उमा भारती यह मानकर चल रही थी कि भाजपा उनसे है और शिवराज सिंह चौहान यह मानकर नहीं चल रहे हैं कि भाजपा उनसे है। पुणे के एक कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम राजनीति छोड़ दें तो क्या चोरी करने वालों को राजनीति सौंप दें। शिवराज सिंह चौहान आज भले ही ईमानदारी का चोला ओढ़ कर कुछ भी बोलते रहें लेकिन मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान के ऊपर भी आरोप काम नहीं लगे डंपर घोटाले का आरोप इन पर लगा व्यापमं घोटाला इन्हीं के मुख्यमंत्री रहते हुए हुआ सरकार भारतीय जनता पार्टी की थी इसलिए तमाम घोटाले दबा दिए गए लेकिन ऐसा नहीं है की शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह से दूध के धुले हैं। शिवराज सिंह चौहान ने छात्रों को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि क्या राजनीति अमीरों का तिजोरी से चलेगी। यह सवाल तो शिवराज सिंह चौहान को स्वयं शीशे के सामने खड़े होकर खुद से करना चाहिए जब तक मुख्यमंत्री थे तो क्या अमीरों के प्रभाव से शिवराज सिंह चौहान मुक्त थे। जब तक कोई व्यक्ति ऊंट में नहीं बैठता तो उसे यही लगता है कि ऊंट में बैठने वाला व्यक्ति हल क्यों रहा है लेकिन जैसे ही वह ऊंट में बैठ जाता है हिलना उसकी मजबूरी होती है।
चाल चरित्र चेहरे की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी का वर्षों तक सरकार में रहकर शिवराज सिंह ने नेतृत्व किया लेकिन शीशे के सामने खड़े होकर शिवराज सिंह चौहान खुद से सवाल करें कि क्या वाकई में मुख्यमंत्री रहते हुए चाल चरित्र चेहरे का बचाव शिवराज सिंह चौहान ने किया। शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी जाने का दर्द उनके बेटे कार्तिकेय को भी है। शिवराज सिंह चौहान जिस विधानसभा से चुनाव लड़ते हैं उस विधानसभा क्षेत्र में कार्तिकेय ने पहुंचकर कहा हालांकि सरकार अपनी है हमने जो वायदे किए हैं उसे पूरा करेंगे लेकिन अगर वह वायदे नहीं पूरा होते तो सरकार से भी लडऩे में हम पीछे नहीं रहेंगे आखिरकार अभी जुम्मा जुम्मा सरकार को चलते 1 महीने भी ठीक से नहीं हुआ और शिवराज सिंह चौहान तथा उनके बेटे कार्तिकेय दोनों मिलकर अप्रत्यक्ष रूप से जिस तरीके से सरकार पर हमला बोल रहे हैं उसे तो यही लगता है कि खिसियानी बिल्ली खम्मा नोचे।

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