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क्या अर्जुन सिंह यौप श्रीनिवास वाला दौर लौटेगा…

मध्य प्रदेश के अंदर कांग्रेस ने नव सृजन के माध्यम से पूरे प्रदेश के अंदर जिला अध्यक्षों की घोषणा करते हैं इस घोषणा से विंध्य क्षेत्र में बल्कि पूरे प्रदेश में खलबली मची हुई है । अलग-अलग जगह पर अलग-अलग जातियों के लोग बैठक कर कांग्रेस पर अपनी जाति के उपेक्षा के आरोप लगा रहे हैं इसी संदर्भ में पिछले दिनों रीवा में एक ब्राह्मण समाज की बैठक हुई जिसमें सतना जिले के पूर्व ग्रामीण अध्यक्ष दिलीप मिश्रा महीपत शुक्ला जैसे तमाम नेता शामिल हुए । विंध्य क्षेत्र के ब्राह्मणों की जो बैठक रीवा में हुई उसमें ब्राह्मणों ने कांग्रेस के ऊपर यह आरोप लगाया कि कांग्रेस अब ब्राह्मण की उपेक्षा कर रही है एक दौर था जब विंध्य क्षेत्र में अर्जुन सिंह एवं श्रीनिवास तिवारी के चलते बिना क्षेत्र में कांग्रेस काफी मजबूत हुआ कर और विंध्य क्षेत्र के ब्राह्मण और ठाकुर दोनों जातियों के लोग कांग्रेस को पर्याप्त समर्थन भी दिया करते थे । यह अलग बात है कि अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी में आपसी प्रतिद्वंदिता पर्याप्त मात्रा में रहती थी । एक ही दल में रहने के बाद भी दोनों नेता एक दूसरे को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे बाबूजी देश के इन दोनों नेताओं की वजह से बिना क्षेत्र में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती थी इन दोनों नेताओं के न रहने के बाद कांग्रेस दिन प्रतिदिन कमजोर होती चली गई। अगर पिछले चुनाव पर नजर डाली जाए तो कई चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाई । सतना जिले के अंदर पांच विधानसभा सीट है जिसमें कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर जीत पाई वहीं मैहर जिले में दो विधानसभा सीट है वहां कांग्रेस को सिर्फ एक इसी तरीके से चुरहट सीट से अजय सिंह राहुल चुनाव जीते । आज की स्थिति में कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले काफी कमजोर है उसके पीछे लोग यही तर्क देते हैं कि विंध्य क्षेत्र जातीय राजनीति से संचालित होता है और आज की तारीख में जातीय संतुलन बनाने के मामले में भारतीय जनता पार्टी का कोई जवाब नहीं । विंध्य क्षेत्र में चुनाव जीतने में तीन जातियां प्रमुख रूप से निर्णायक मानी जाती है जिसमें ब्राह्मण ठाकुर और पटेल । आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी ने रीवा के विधायक राजेंद्र शुक्ला को उपमुख्यमंत्री बनाकर ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की वहीं क्षत्रिय समाज के पर्याप्त लोगों को टिकट देकर पांच विधायक क्षत्रिय समाज से बनाए हैं । इसमें सतना जिले से तीन क्षत्रिय विधायक निर्वाचित हुए हैं जिसमें नागौर से नागिन सिंह चित्रकूट से सुरेंद्र सिंह हर बार तथा रामपुर बघेलान से विक्रम सिंह जी इसके अलावा रीवा जिले से भी दो छत्री विधायक चुने गए हैं गुड से नागेंद्र सिंह और सिरमौर से दिव्यराज सिंह आज की तारीख में विधायक है। रीवा जिले में श्रीनिवास तिवारी की वजह से जिन ब्राह्मणों का कांग्रेस की तरफ झुकाव था वह भी अब भारतीय जनता पार्टी की तरफ हो गया है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में श्रीनिवास तिवारी के नाती सिद्धार्थ तिवारी को टिकट नहीं थी और भारतीय जनता पार्टी ने इसका भी फायदा उठाते हुए सिद्धार्थ तिवारी को कांग्रेस से तोड़कर भाजपा में ले आई और त्यौंथर से टिकट देकर उन्हें भी विधायक बना दिया । पटेल वोटो को साधने के लिए भारतीय जनता पार्टी सतना से गणेश सिंह को लोकसभा का टिकट देती है जिसकी वजह से गणेश सिंह लगातार पांचवीं बार सांसद बने भारतीय जनता पार्टी पटेल और ब्राह्मण वोटो का ध्रुवीकरण सतना में करती है जिसकी वजह से सतना लोकसभा सीट अजेय बनी हुई है । गणेश सिंह के पहले दो बार रामानंद सिंह पटेल भी सांसद रह चुके हैं। सतना लोकसभा सीट पर लगातार पटेल जाति का व्यक्ति सात बार से चुना जा रहा है इसी तरीके से रीवा में जनार्दन मिश्रा को लोकसभा का टिकट देकर ब्राह्मण वोट साधने की कोशिश की जाती है सीधी से भी सांसद राजेश मिश्रा है। मऊगंज जिले से प्रदीप पटेल को टिकट दी जाती है और प्रदीप पटेल लगातार मऊगंज से दूसरी बार विधायक चुने गए हैं। विंध्य क्षेत्र के अंदर ब्राह्मण ठाकुर और पटेल वोटो का जो समीकरण भारतीय जनता पार्टी ने स्थापित किया है वह कहीं ना कहीं आज की तारीख में अभेद्य बनता जा रहा है । वैश्य समाज के लोग मूलत व्यवसाय होते हैं उन्हें प्रदेश के अंदर शांति व्यवस्था कायम रहे यही चाहते हैं क्योंकि प्रदेश के अंदर जब शांति व्यवस्था बनी रहती है तो व्यवसाय इतनी ज्ञान के साथ अपना व्यवसाय संचालित कर सकते हैं इसलिए हाथ से व्यवसाय ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी को ही वोट देता है तमाम समीकरणों के चलते भारतीय जनता पार्टी बीते कई वर्षों से कांग्रेस के ऊपर हावी है दूसरा विंध्य क्षेत्र के अंदर कांग्रेस के पास जो नेतृत्व था वह आपस में ही लड़ता रहा विभिन्न क्षेत्र के सबसे बड़े नेता अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल माने गए लेकिन अजय सिंह राहुल और स्वर्गीय इंद्रजीत पटेल के पुत्र कमलेश्वर पटेल सीधी जिले में ही लड़ने लगे अजय सिंह राहुल की लड़ाई सतना जिले में राजेंद्र सिंह से भी चलती रही और सतना के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा के साथ रीवा जिले के अंदर श्रीनिवास तिवारी का परिवार अजय सिंह राहुल सिंह लड़ता ही रहा इस तमाम खींचतान ने कांग्रेस को तीन प्रतिदिन कमजोर किया इसके अलावा कांग्रेस पार्टी के भीतर कोई ऐसा मजबूत नेतृत्व उभर कर नहीं आ पाया जिससे कांग्रेस मजबूत होती। 90 के दशक में विंध्य क्षेत्र के अंदर जातिवाद का उपहार तेजी के साथ हुआ जिसके चलते बहुजन समाज पार्टी को देश के अंदर पहले सांसद रीवा से भी सिंह के रूप में मिला उसके बाद 1996 में सुखलाल कुशवाहा ने प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री को लोकसभा चुनाव में पराजित कर दिया 1996 में देश के अंदर सतना लोकसभा का चुनाव चौंकाने वाला था । इस चुनाव में मध्य प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह एवं वीरेंद्र कुमार सकलेचा बहुजन समाज पार्टी के सुखलाल कुशवाहा से पराजित हुए थे । 90 के दशक में कई विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के लोग चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे जिसमें चित्रकूट से गणेश बारी रामपुर बघेलान से राम लखन पटेल जो इस समय कांग्रेस में है इसके अलावा राय गांव से उषा चौधरी भी एक बार चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे फिलहाल उषा चौधरी भी अब भारतीय जनता पार्टी है । रीवा जिले से भी कई विधायक बहुजन समाज पार्टी से जीतकर विधानसभा पहुंचे जिसमें मऊगंज के आई एम पी वर्मा तीन बार विधायक रहे गूढ़ से विद्यावती पटेल चुनाव जीत कर पहुंची । इसके अलावा मंगवा विधानसभा से बहुजन समाज पार्टी की शीला त्यागी ने 2013 में मंगवाना विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया । बहुजन समाज पार्टी से विंध्य क्षेत्र से एक ब्राह्मण विधायक भी चुने गए जिनका नाम था राजकुमार उरमालिया इन्हें बहुजन समाज पार्टी ने टिकट दिया था । अब बहुजन समाज पार्टी कहीं भी इस हैसियत में नहीं है कि चुनाव जीत ले । हर विधानसभा क्षेत्र में वोट काटने का काम तो करती है बहुजन समाज पार्टी के पास अभी भी एक निश्चित वोट बैंक है लेकिन यह वोट बैंक चुनाव जीतने लायक नहीं है । आज की तारीख में बहुजन समाज पार्टी का उपयोग भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नाराज नेता कर रहे हैं जिन्हें इन दोनों दलों से टिकट नहीं मिलता वह जाकर इन दोनों से चुनाव लड़ लेते हैं जैसे पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से सतना विधानसभा से रत्नाकर चतुर्वेदी शिवा लड़े नागौर से कांग्रेस से बगावत करके यादवेंद्र सिंह चित्रकूट से सुभाष शर्मा डोली भाजपा से बगावत करके बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर लड़े लेकिन कोई भी व्यक्ति चुनाव जीत नहीं पाया। यहां तक की लोकसभा चुनाव में नारायण त्रिपाठी ने भी बहुजन समाज पार्टी से अपनी किस्मत आजमाई लेकिन जीत का आंकड़ा नहीं छू सके । कुल मिलाकर वर्तमान राजनीति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अब कांग्रेस में ब्राह्मण और ठाकुरों का वर्चस्व खत्म हो चुका है जिन ब्राह्मण और ठाकुर नेताओं को कांग्रेस को स्थापित करना था उनमें एकदम बची ही नहीं कि वह स्थापित कर सके। थक हार कर अब कांग्रेस के सिर्फ नेतृत्व को यह निर्णय लेना पड़ा कि यदि कांग्रेस पार्टी को विंध्य क्षेत्र में बचाना है तो उसे नए समीकरण निर्मित करने पड़ेंगे। उस नए समीकरण के मुताबिक अब पार्टी अल्पसंख्यक सिद्धार्थ कुशवाहा के सहारे कुशवाहा वोट तथा भारतीय जनता पार्टी से नाराज जातियों का समीकरण बनाने में चुकी हुई है अब देखना यह है की आने वाले समय में कांग्रेस अपना खोया हुआ जनाधार वापस ला पाती है या नहीं।

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