नारायण की नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर

सतना। मैहर से अलग-अलग दलों से चार बार के विधायक नारायण त्रिपाठी की नजर इस समय वर्तमान राजनीतिक हालातों को देखते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है । यह सुनकर आप चौंक भी सकते हैं । आपको यह लग सकता है कि यह विश्लेषण बकवास है या आपको यह भी लग सकता है कि यह विश्लेषण पेड़ भी हो सकता है । लेकिन पूरा विश्लेषण सुनने के बाद आपको यह लगेगा कि न तो यह विश्लेषण बकवास है और ना ही यह विश्लेषण पेड है । अगर हम 2018 के चुनाव पर नजर डालें तो चीजें बहुत कुछ स्पष्ट हो जाती है । 2018 में कांग्रेस को 114 सीट मिली थी और भारतीय जनता पार्टी को 109 भाजपा 5 सीट से पीछे थी और इसी पांच सीट के अंतर के चलते कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सरकार बना ली । 2018 के चुनाव में बसपा को 2 सीट मिली थी एक सीट समाजवादी पार्टी को तथा चार निर्दलीय विधायक चुनकर आए थे । भाजपा ने पहले सरकार बनाने का प्रयास किया लेकिन भाजपा को न तो बसपा ने समर्थन दिया न समाजवादी पार्टी ने समर्थन दिया और ना ही चार निर्दलीयो ने । भाजपा ने हाथ पांव बहुत मारा लेकिन जब किसी अन्य दल का समर्थन नहीं मिला तो कांग्रेसी ने सरकार बना ली । अगर 2018 के अंकगणित को समझें तो कांग्रेश के पास 114 सीट थी । कांग्रेस ने चार निर्दलीय दो बसपाई और एक समाजवादी पार्टी के विधायक के समर्थन से सरकार बना दी अग्रिम सारे विधायकों का योग कर दे जो कांग्रेस को समर्थन दे रहे थे तो इन सारे विधायकों का योग होता है सात । चार निर्दलीय दो बसपा के और एक समाजवादी पार्टी का विधायक । इन 7 विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बन गई । और भाजपा सरकार नहीं बना पाऊं। आइए आप समझते हैं नारायण त्रिपाठी के गणित को । नारायण त्रिपाठी ने रीवा संभाग और शहडोल संभाग में अपने आप को केंद्रित किया है इन दोनों संभाग में 30 विधानसभा की सीटें आती है । विंध्य के निवासियों के लिए अलग विंध्य प्रदेश निश्चित तौर पर भावनात्मक मुद्दा है । मैं भी पत्रकार हूं और विंध्य प्रदेश का निवासी हूं इस लिहाज से यदि कोई विंध्य प्रदेश के लिए ईमानदारी के साथ संघर्ष करता हुआ दिखेगा तो निश्चित तौर पर हमारा भी मन छत्तीसगढ़ को देखने के बाद उत्तरांचल को देखने के बाद झारखंड को देखने के बाद ऐसा लगता है कि हमें भी विंध्य प्रदेश के मुद्दे पर उसी प्रत्याशी को वोट देना चाहिए जो विंध्य प्रदेश के लिए संघर्ष करें। अब नारायण ने जो नई पार्टी बनाई है जिसका नाम है विंध्य जनता पार्टी यदि 30 विधानसभा में विंध्य जनता पार्टी के प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं तो 30 में यदि दस भी चुनाव जीतने पाए और पिछली बार की तरह या यूं कहे कि दो हजार अ_ारह की तरह 2023 में भी त्रिशंकु विधानसभा बनी या यू कहे की मध्य प्रदेश की जनता ने खंडित जनादेश दिया तो ऐसे में 10 विधानसभा सीट जीतने वाली पार्टी भी किसी भी बड़े दल से बड़ी सौदेबाजी कर सकती है । अगर नारायण की विंध्य जनता पार्टी 10 सीट जीती और प्रदेश के अंदर खंडित जनादेश हुआ तो ऐसे में कांग्रेश और भाजपा दोनों नारायण त्रिपाठी से बात करेंगे नारायण त्रिपाठी पहला प्रस्ताव को यह भी रख सकते हैं कि हमें मुख्यमंत्री बना दीजिए हम आपकी पार्टी को समर्थन दे सकते दूसरा प्रस्ताव प्रदेश बनाइए तो हम आपको समर्थन दे सकते है ।ऐसे में जो दल नारायण की बात से सहमत होगा नारायण उसके साथ जा सकते हैं। ऐसा क्यों हो सकता है यह भी जान लीजिए मध्य प्रदेश के अंदर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में प्रमुख मुकाबला है विंध्य क्षेत्र के अंदर जिस तरीके से किसी जमाने में बहुजन समाज पार्टी का उभार था अब वह करीब-करीब खत्म सा है बहुजन समाज पार्टी विंध्य क्षेत्र में वोट तो काट सकती है लेकिन आज तक बहुजन समाज पार्टी प्रदेश के अंदर कभी भी सरकार बनाने और बिगाडऩे की निर्णायक भूमिका में नहीं आ पाई । रीवा और शहडोल संभाग में विंध्य का मुद्दा जो होगा वह कहीं न कहीं भावनात्मक होगा इसके चलते आम आदमी पार्टी विंध्य क्षेत्र में उभरने ही नहीं पाएगी । भारतीय जनता पार्टी जिस तरीके से सर्वे करा रही है जिस तरीके से परिवारवाद के नाम पर प्रभावी नेताओं के परिजनों को टिकट से वंचित कर रही है इसके अलावा कई बार के विधायकों की टिकट भी काटने की बात कह रही है। अब ऐसे लोग कहां जाएंगे निश्चित तौर पर किसी न किसी दल का सहारा लेंगे या निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे ऐसे में निर्दलीय चुनाव लडऩे से बेहतर है अलग विंध्य प्रदेश की नाव में सवार होकर चुनावी वैतरणी पार की जाए । जैसा कि सुनने में आ रहा है कि इस बार सीधी के केदारनाथ शुक्ल की टिकट कट सकती है रीवा के भी कुछ विधायकों के टिकट कट सकते है ऐसे में ऐसे में यह नेता विंध्य जनता पार्टी की रेल में सवार होकर भोपाल जाने का सपना अवश्य देख सकते हैं इसके अलावा बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जो भारतीय जनता पार्टी से टिकट मांग रहे हैं कांग्रेसी टिकट मांग रहे हैं और प्रभावी नेता भी है ।यदि उन्हें भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेसी टिकट नहीं दी तो फिर क्या होगा, सीधा सा जवाब है उन्हें किसी ने किसी दल का सहारा तो चाहिए ऐसे में विंध्य जनता पार्टी बागी नेताओं के लिए भी एक अच्छा प्लेटफार्म इसलिए भी साबित हो सकता है कि वह भी विंध्य की लड़ाई में कूद जाएंगे और जो लड़ाई आज की तारीख में आपको कमजोर नजर आ रही है वह लड़ाई चुनाव आते-आते या चुनाव के बाद एक मजबूत लड़ाई में तब्दील हो सकती है । अब अगर इतनी बड़ी तैयारी नारायण त्रिपाठी कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर आगे चलकर इसका फायदा भी उठाने की कोशिश करेंगे । हम 30 सीट की बात नहीं कर रहे है लेकिन बिंद जनता पार्टी यदि 10 सीट भी जीतने पाई और प्रदेश के अंदर खंडित जनादेश आया तो निश्चित तौर पर नारायण त्रिपाठी की भूमिका प्रदेश के अंदर एक बड़े नेता के रूप में परिवर्तित हो सकती है । लेकिन ऐसा तभी होगा जब प्रदेश के अंदर खंडित जनादेश यदि स्पष्ट जनादेश आया तो अलग विंध्य प्रदेश की मांग की लड़ाई भी लंबी लडऩी पड़ेगी तथा नारायण त्रिपाठी की उन तमाम महत्वाकांक्षाओं पर भी विराम लग सकता है । लेकिन यह राजनीति है राजनीति और क्रिकेट का खेल दोनों संभावनाओं का खेल जब तक दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने सरकार नहीं बनाई थी तब तक अधिकांश भविष्यवक्ता भी यह मानने को तैयार नहीं थे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार केजरीवाल बना देंगे यहां तक तो ठीक था पंजाब में भी कोई नहीं मानता था अमरिंदर सिंह नवजोत सिंह सिद्धू ऐसे तमाम चेहरे आम आदमी पार्टी के सामने धूल धूसरित हो जाएंगे । तमाम ऐसे नेता हैं जो विंध्य की संभावनाओं को सिरे से नकार देते है । लेकिन उन नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी आंदोलन 1 दिन में बड़ा नहीं होता जब आंध्र प्रदेश से अलग राज्य तेलंगाना की लड़ाई शुरू हुई थी तब भी किसी ने नहीं सोचा था कि तेलंगाना अलग राज्य बन जायेगा ,लेकिन बना । व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते यदि विंध्य प्रदेश का गला नहीं घोंटा गया तो वक्त चाहे जितना लगे लेकिन विंध्य प्रदेश बन सकता है । बस जरूरत सिर्फ इतनी है कि विंध्य प्रदेश का निवासी विंध्य प्रदेश के नाम पर यदि अपना कीमती वोट विंध्य प्रदेश समर्थित प्रत्याशियों को देना तय कर ले ।




