इन 36 सीटो पर नाक रगडती है भाजपा
भारतीय जनता पार्टी भले ही 18 वर्षों से प्रदेश की सत्ता का स्वाद चख रही लेकिन प्रदेश के अंदर तकरीबन 36 सीटे ऐसी है जहां भारतीय जनता पार्टी को ढंग का प्रत्याशी ढूंढ नहीं मिल रहा है। भारतीय जनता पार्टी तमाम प्रयासों के बाद भी कई ऐसी सिम हैं जिसमें विजय का स्वाद नहीं चख पा रही है । हालांकि भारतीय जनता पार्टी जब कारगर ढंग से रणनीति बनाती है तो उसका असर भी दिखाई पड़ता है पिछले विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के अंदर कुछ सीटे भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को हराकर छुड़ाई भी थी जिसमें प्रतिपक्ष के नेता रहे अजय सिंह राहुल की चुरहट सीट और पूर्व विधानसभा के उपाध्यक्ष रह चुके राजेंद्र सिंह की सीट भी भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस से छीन ली थी लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी भारतीय जनता पार्टी चित्रकूट सीट आज भी कांग्रेस से नहीं छीन पा रही है अगर गौर से देखा जाए तो जी राम के नाम पर भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में दो सीट से लेकर स्पष्ट बहुमत तक पहुंच गई उसे राम की तपोभूमि चित्रकूट में भारतीय जनता पार्टी आज तक सिर्फ एक बार जीती है । जबकि इसी चित्रकूट क्षेत्र में सामाजिक संत कहे जाने वाले नाना जी देशमुख ने बरसों अपनी साधना की और दीनदयाल शोध संस्थान का एक प्रकल्प भी स्थापित किया जो आज भी बड़े पैमाने पर संचालित है सामाजिक स्तर पर जिस तरीके की परिवर्तन की पराकाष्ठा की बात पूरे देश में सुनाई पड़ती है उसके बाद भी आखिरकार भारतीय जनता पार्टी चित्रकूट सीट क्यों नहीं जीत पाती यह अपने आपमें बड़ा सवाल है । हालांकि प्रदेश के अंदर ऐसी भी तमाम सीटे हैं जहां भारतीय जनता पार्टी के हार का अंतर बहुत बड़ा है । भारतीय जनता पार्टी का 2023 के अंदर ऐसा प्रयास होगा कि या तो यह सीटें जीती जाए या तो हार के अंतर को कम किया जाए। भारतीय जनता पार्टी ऐसी सीटों पर प्रभावी चेहरों का चयन करके कारगर रणनीति के सहारे कांग्रेस की उन सीटों को भी जीतने की कोशिश करेगी जिन सीटों पर कांग्रेस के नेता काबिज है ।
भाजपा के लिए तीन दर्जन सीटें बनी मुसीबत, नए चेहरों की तलाश
सर्वाधिक सीटें ग्वालियर -चंबल अंचल की शामिल
मध्यप्रदेश भले ही भाजपा का गढ़ है और प्रदेश में पार्टी की भी दो दशक से सरकार है। इसके बाद भी करीब तीन दर्जन विधानसभा की सीटें ऐसी हैं, जहां पर उसको जीत के लिए जरूरी साधन जुगाड़ने पड़ेंगे। मध्यप्रदेश को भले ही भारतीय जनता पार्टी की प्रयोगशाला कहां जाया भारतीय जनता पार्टी का गढ़ कहा जाए लेकिन इसके बाद भी मध्य प्रदेश के अंदर कई ऐसी सीटें हैं जहां भारतीय जनता पार्टी के हार का अंतर 10000 से भी ज्यादा होता है। इस वजह से ही इस बार पार्टी के रणनीतिकारों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है। अहम बात यह है कि इनमें से अधिकांश सीटें ग्वालियर-चंबल अंचल के तहत ही आती हैं। अब भाजपा के पास इस अंचल में एक और प्रभावशाली चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में रूप में आ चुका है, यदि भारतीय जनता पार्टी चंबल और ग्वालियर क्षेत्र में अंतर कला से उभरकर ज्योतिरादित्य सिंधिया का ठीक से उपयोग करने पाई तो ग्वालियर चंबल क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी कई सीटों पर जीत की इबारत लिख सकती लेकिन अगर अंतर कला से जूस पी रही तो शायद परिणाम और भी भयावह आ सकते है । फिर भी इस बार भाजपा ऐसी सीटों की जीत के लिए माइक्रो स्तर पर काम कर रही है। इसके अलावा यह भी लगभग तय कर लिया गया है कि जहां पर पार्टी को बड़े अंतर पर हार मिली है, वहां पर इस बार नए मजबूत चेहरों को ही चुनाव में उतारा जाएगा। ऐसी सीटों पर इस बार पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व स्वयं नजर बनाए हुए है। इन सीटों की पूरी मैदानी रिपोर्ट भी दिल्ली बुलाई गई है। हाईकमान ने इस बार विधानसभा चुनाव के लिए हर सीट की मैदानी रिपोर्ट के आधार पर प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत हर सीट पर तीन से चार नामों का पैनल तैयार करवाया गया है। पैनल में शामिल नामों के जातिगत समीकरण, क्षेत्र में उनकी पकड़ और विपक्षी उम्मीदवार को लेकर आंकलन का काम किया जा रहा है। इसमें जो भी नाम सबसे मजबूत होगा, उसे ही चुनावी मैदान में उतारा जाएगा। इसके लिए कई तरह के सर्वे का सहारा भी लिया जा रहा है। इन सीटों को जीत के लक्ष्य पर रख चल रही भाजपा ने ऐसे इलाकों में पार्टी के अपने बड़े और प्रभावशाली नेताओं को भी मैदान में उतार दिया है। इसके तहत जहां स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसी सीटों पर जा रहे हैं तो वहीं अन्य बड़े नेताओं में शामिल कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा भी लगातार प्रवास कर रहे हैं। इनके अलावा ऐसे विधानसभा क्षेत्र जहां भाजपा को लगातार दो से अधिक मर्तबा हार का सामना करना पड़ा, उन सीटों के लिए नया प्रयोग किया जाएगा।
इन सीटों पर जीत की तलाश
भाजपा को इस बार विधानसभा चुनाव में जिन हारी हुई सीटों पर जीत की तलाश है, उनमें ग्वालियर -चंबल अंचल की सुमावली, मुरैना, दिमनी, लहार, गोहद, ग्वालियर पूर्व, डबरा, भितरवार, करैरा, पिछोर, राघौगढ़, चंदेरी के अलावा अन्य अंचलों की राजनगर,देवरी, दमोह, सिंहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़, जबलपुर पश्चिम, डिंडौरी, बैहर, लांजी, लखनादौन, अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, पांढुर्ना, भोपाल उत्तर, ब्यावरा, भीकनगांव, कसरावद, भगवानपुरा, राजपुर, थांदला, गंधवानी, कुक्षी एवं राऊ शामिल है। इनमें से भी एक दर्जन से अधिक सीटों पर बीते चुनाव में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। इन सीटों को भाजपा संगठन ने आकांक्षी सीटों की श्रेणी में रखा है।
कई सीटें ऐसी हैं जहां भारतीय जनता पार्टी अपनी प्रतिष्ठा भी नहीं बचा पाई अगर दूसरों शब्दों में कहें तो भारतीय जनता पार्टी की उल्लेखित विधानसभाओं में नाक कट गई । हालांकि कुछ ऐसी विधानसभा है जहां भारतीय जनता पार्टी लाख प्रयास कर ले इस बात की उम्मीद कम ही है कि यह भारतीय जनता पार्टी जीत पाएगी जिसमें राघोगढ़ है और लहार सीट का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है ।
फिर भी हम आपको ऐसी सीटों का ब्यौरा दे रहे हैं जहां पर भारतीय जनता पार्टी के हार का अंतर बड़ा है
राघौगढ़- 46697, शाजापुर- 44979, श्योपुर- 41710, शहपुरा- 33960, मनावर- 39501, कुक्षी- 38831, सरदारपुर- 36205, जबलपुर पूर्व-35136, महेश्वर- 35836, सेंवढ़ा- 33268, सिंहावल- 31506, राजगढ़- 31183 और भैंसदेही में 30880 वोटों से हार मिली थी।
पिछले चुनाव में रह गई खामियों से सबक लेते हुए इस बार पार्टी किसी भी तरह की कोई भी खामी नहीं छोड़ना चहती है। यही वजह है कि चुनावी तैयारियों को लेकर पार्टी हाईकमान ने चुनाव के सारे सूत्र अपने हाथ में तो ले ही लिए हैं, साथ ही पार्टी के बड़े नेता भी लगातार तैयारियों का फीडबैक ले रहे हैं। मप्र के विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी हाईकमान कितना गंभीर है , इससे समझा जा सकता है कि इस मामले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सत्ता व संगठन के नेताओं तक से चर्चा कर चुके हैं। इनके अलावा राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष, सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, प्रभारी मुरलीधर राव के अलावा चुनाव प्रबंधन प्रमुख केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्रीद्वय भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव भी लगातार मौजूदा हालातों पर मंथन कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस बार मप्र को लेकर केन्द्र स्तर पर एक आला नेताओं की गठित टीम ही चुनाव प्रबंधन, प्रत्याशी और रणनीति सहित अन्य बड़े फैसले लेने का काम करेगी। भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश में 2023 में सरकार बनाने के लिए कोई भी कोर कसर छोड़ना नहीं चाहती इसीलिए भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपने निर्देशन में दो मंत्रियों को मध्य प्रदेश का चुनावी प्रभारी बनाकर भेजा है जिसमें भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव मध्य प्रदेश की चुनावी विषाद पर नजर रखेंगे इन्हीं की रिपोर्ट पर अमित साह बड़े फैसले लेंगे । पिछले चुनाव में बहुत कुछ निर्णय शिवराज सिंह चौहान के इशारे पर हो जाते थे लेकिन इस बार इस बात की संभावना बहुत कम है कि शिवराज सिंह का निर्णय ही सर्वमान्य होगा।