फिर माई के लाल की गूंज
पिछले विधानसभा चुनाव में माई के लाल के चलते भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश की सरकार गवानी पड़ी थी यहां पर यह बताना उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने एक कार्यक्रम में यह कह कर सवर्णों को नाराज कर दिया था कि कोई माई का लाल मेरे रहते आरक्षण खत्म नहीं कर सकता बस इसी बात पर काफी कुछ समय तो नाराज नहीं हुई लेकिन कुछ सामानों की नाराजगी भारतीय जनता पार्टी को ले डूबी । राजनीतिक समीक्षकों का स्पष्ट मानना है की माई के लाल के चलते ही पिछली बार भाजपा को सरकार गवानी पड़ी थी यह तो कमलनाथ की किस्मत खराब थी जिसके चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी नहीं बनी और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दल बदल कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरा दी और दोबारा शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया। 2023 में भी विधानसभा के चुनाव हैं और 2023 चुनावी वर्ष होने के कारण सभी वर्ग के लोग अपनी मांगे लेकर सरकार से मनवाने पर तुले हुए करणी सेना ने अपनी 21 सूत्री मांगों को लेकर भोपाल के जंबूरी मैदान में अपनी ताकत का एहसास करा दिया है जिस तरीके से करणी सेना की संख्या भोपाल के जंबूरी मैदान में दिखाई पड़ी उस संख्या बल को देखते हुए सरकार के माथे पर परेशानी का पसीना स्पष्ट नजर आ रहा है। यदि सरकार ने करणी सेना की मांगे नहीं मानी तो माई का लाल का नारा उछाल कर करणी सेना भाजपा का नुकसान कर सकती है इतना ही नहीं प्रदेश के अंदर कर्मचारी संगठन भी पेंशन बहाली को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए तैयार है यदि सरकार ने चुनाव के पहले पेंशन बहाली को लेकर कोई महत्वपूर्ण फैसला नहीं लिया तो कर्मचारी जगत की भी नाराजगी भारतीय जनता पार्टी को झेलनी पड़ेगी या यूं कहें कि चुनावी वर्ष में जिस तरीके के कांटे सरकार के रास्ते में आ रहे हैं उन कांटों से बचकर निकलना और सरकार बनाना अपने आप में मुश्किल तो नहीं लेकिन कठिन अवश्य दिखाई देता है ।
जिस माई के लाल की वजह से भाजपा की पिछली सरकार नहीं बन पाई थी वही माई के लाल को फिर से करणी सेना के बैनर तले जंबूरी मैदान में सुनाई पडऩे लगी। करणी सेना को भी यह मालूम है कि यह चुनावी वर्ष है यदि चुनावी वर्ष में सरकार ने मांगे नहीं मानी तो फिर यह सरकार करणी सेना की मांग कभी नहीं मानी कि ऐसे में जंबूरी मैदान से माई के लाल का उद्घोष कहीं ना कहीं शिवराज सिंह के माथे पर परेशानी की लकीर जरूर पूछ रहा है ऐसे में अब देखना यह है कि सरकार करणी सेना की मांगों को मानती है या उनका विरोध स्पष्ट तौर पर लेकर चुनावी वर्ष में अपने लिए मुश्किल खड़ी करती है।